' मैं यह नहीं कर सकता ' एक कथन नहीं है बल्कि एक मानसिक गुलामी है जिसकी बेड़ियां दिखती नहीं हैं मगर ज्यादातर लोग किसी न किसी बात को लेकर इन अदृश्य बेड़ियों से जकड़े हुए हैं।
एक बार एक विशालकाय हाथी को पाँव में बंधी एक पतली सी खूँटाबद्ध रस्सी के आगे विवश देखकर किसी ने महावत से पूछा कि ये हाथी तो इसे आसानी से तोड़ सकता है मगर रस्सी के आगे लाचार क्यों है ? तोड़कर स्वच्छंदता से क्यों नहीं घूम लेता ? इसका जवाब सुनकर निश्चित ही मेरे कुछ मित्र मेरी इस पोस्ट का मर्म समझ जाएंगे। महावत ने कहा कि जब यह बहुत छोटा था तब इसे इसी तरह की किसी रस्सी से बाँधा गया था। तब इसने खूब उछल-कूद की उस रस्सी को तोड़ने के लिए , हाँफा -झुंझलाया मगर तोड़ नहीं पाया और कुछ दिनों के बाद रस्सी को तोड़ने की कोशिश करनी इसने छोड़ दी। उसके बाद से हाथी बड़ा होता गया मगर हमने रस्सी कमोबेश वैसी ही रखी। अब यह तोड़ने की कोशिश ही नहीं करता है। बस बंधा रहता है।
तोड़कर देखिए ना एक बार फिर से इन जंजीरों को जो धीरे-धीरे हमारे चेतन-अवचेतन मन में बैठा दी गई हैं।
ALL THE BEST 😍
एक बार एक विशालकाय हाथी को पाँव में बंधी एक पतली सी खूँटाबद्ध रस्सी के आगे विवश देखकर किसी ने महावत से पूछा कि ये हाथी तो इसे आसानी से तोड़ सकता है मगर रस्सी के आगे लाचार क्यों है ? तोड़कर स्वच्छंदता से क्यों नहीं घूम लेता ? इसका जवाब सुनकर निश्चित ही मेरे कुछ मित्र मेरी इस पोस्ट का मर्म समझ जाएंगे। महावत ने कहा कि जब यह बहुत छोटा था तब इसे इसी तरह की किसी रस्सी से बाँधा गया था। तब इसने खूब उछल-कूद की उस रस्सी को तोड़ने के लिए , हाँफा -झुंझलाया मगर तोड़ नहीं पाया और कुछ दिनों के बाद रस्सी को तोड़ने की कोशिश करनी इसने छोड़ दी। उसके बाद से हाथी बड़ा होता गया मगर हमने रस्सी कमोबेश वैसी ही रखी। अब यह तोड़ने की कोशिश ही नहीं करता है। बस बंधा रहता है।
Student |
तोड़कर देखिए ना एक बार फिर से इन जंजीरों को जो धीरे-धीरे हमारे चेतन-अवचेतन मन में बैठा दी गई हैं।
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1 Comments
Nice motivation msg
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