हूँ भूख मरूँ हूँ प्यास मरूँ मेवाड़ धरा आज़ाद रवै,
हूँ घोर उजाला में भटकूँ पर मन में माँ री याद रवै।
हूँ रजपूतण रो जायो हूँ रजपूती करज चुकावूंला,
ओ शीश पड़े पर पाग नहीं दिल्ली रो मान झुकावूंला।
पीथल कै खीमता बादल री जो रोके सूर उगाली ने,
सिंघां री हाथल सै लेवे बा कूंख मिली कद स्याली ने।
धरती रो पानी पीवै इसी चातक री चूंच बणी कोनी,
कूतर री जूणा जीवे जिसी हाथी री बात सुणी कोनी।
आ हाथां में तलवार थकां कुण राण्ड कवै है रजपूती,
म्याना रे बदले बैरीयां री छात्यां में रेवेली सूती।
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकेलो,
कड़केरी उठती दाना पर पग पग पर खाण्डो धडकेलो।
राखो थे मूछां ऐंठौडी लोही री नदियाँ बहा दूंला,
हूँ अथक लडूंला अकबर सूँ उजड्यो मेवाड़ बसा दूँ ला।
जद राणा रो संदेश गयो पीथल री छाती दूणी ही,
हिन्दवाणो सूरज चमके हो अकबर री दुनीया सूनी ही।
सभी भायां ने प्रताप जयंती री हार्दिक बधाई *
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