कहते हैं बड़े काम करने के लिए अधिक आयु की नहीं वरन अदम्य आत्मबल, साहस, धैर्य जैसे मानवीय गुणों की आवश्यकता होती है... अल्पायु में ही स्वामी विवेकानंद जी ने तत्कालीन समय में ऐसे बड़े काम कर दिए जिनकी कल्पना मात्र भी एक आम भारतीय के लिए मुश्किल थी। बाल्यकाल से ही ईश्वर की खोज में लीन रहने वाले स्वामी जी सभी धर्म आचार्यों से यही प्रश्न पूछते कि क्या आपने ईश्वर को देखा है, परंतु उनकी इच्छा अनुसार उत्तर ना प्राप्त होता...अन्ततः उनकी यह अदम्य जिज्ञासा शांत हुई जब रामकृष्ण परमहंस जी से उनकी भेंट हुई जिन्होंने तत्क्षण उनके प्रश्न का उत्तर दिया कि हाँ, हम ईश्वर को देख सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं... मानो एक उच्च कोटि के गुरु को एक उच्च कोटि के शिष्य की पारस्परिक आकांक्षा स्वामी विवेकानंद एवं रामकृष्ण परमहंस जी के मिलन से साकार हो गई और इसी गुरु शिष्य के मिलन के माध्यम से भारतवर्ष की सनातन परंपरा में छुपी हुई वेदांत की अवधारणा को लेकर एक विश्वव्यापी आंदोलन का प्रारंभ हुआ जिसके प्रणेता बने स्वामी विवेकानंद एवं उन्होंने अपने जीवन के इस मिशन का नाम अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी को समर्पित करते हुए रामकृष्ण मिशन रखा... रामकृष्ण मिशन की स्थापना के समय से लेकर स्वामी विवेकानंद एवं उनके अन्य गुरु भाइयों ने अनेकों कठिनाइयों का सामना किया एवं जीवन पर्यंत स्वामी जी सोए हुए भारत को जगाने के दुरूह कार्य में लगे रहे...उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की पदयात्रा की एवं भारतवर्ष की कठिनाइयों को करीब से समझने का प्रयास किया... इस यात्रा में उन्हें अनुभव हुआ कि विराट भारत की अंतरात्मा प्रदीप्त है पर शरीर सोया हुआ है... इस अंतरात्मा को जगाने का ही वह जीवन भर प्रयास करते रहे... प्रारंभ में नरेंद्र या नरेन के नाम से जाने जाने वाले स्वामी जी को "विवेकानंद" नाम खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह द्वारा स्नेह भ्रातृ रूप में दिया गया... कालांतर में उन्हें जब अवसर मिला शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने का, तो अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए वह चल दिये अमेरिका की यात्रा पर... परंतु जैसा कि हम जानते हैं अगर उद्देश्य विराट हो वृहद हो, तो संपूर्ण सृष्टि उस महान कार्य के उद्देश्य पूर्ति में लग जाती है...तो अमेरिका में भी उन्होंने अनेक अमेरिकी बंधुओं को अपनी विचारधारा से प्रभावित किया और ना केवल अमेरिका बल्कि ब्रिटेन से भी कई महानुभाव भारत भूमि के प्रति प्रेम से खिंचे हुए भारत आ गए और स्वामी जी के कार्यों में पूरे मनोयोग से अपना सहयोग करने में तत्पर हो गए, जिनमें कैप्टन सेवियर, सिस्टर निवेदिता इत्यादि प्रमुख हैं। स्वामी जी अपने सभी गुरु भाइयों एवं देश विदेश से भारत भूमि की सेवा करने आए महानुभावों के प्रति स्वजन सम अपूर्व प्रेम भावना रखते थे... अल्पकाल में ही उन्होंने युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते हुए अपने जीवन के सभी उद्देश्य पूर्ण कर लिए... अपने अंतिम समय के समीप उन्होंने स्वयं ही उद्घोषणा की थी कि मैं अपने जीवन के 40 वर्ष नहीं देखूंगा... संभवतः उन्हें प्रतीत हो गया था कि एक बड़े वृक्ष के नीचे छोटे-छोटे वृक्ष पनप नहीं पाते हैं सो उन्होंने अपनी परंपरा का निर्वाह करने के लिए अपने गुरु भाइयों और शिष्यों को प्रेरित किया, अनवरत जनकल्याण कार्यों हेतु उनका मार्गदर्शन किया और 39 वर्ष की ही अल्पायु में 04 जुलाई 1902 को चिर निद्रा में विलीन हो गए, परंतु आज भी स्वामी जी से प्रेम करने वाले सभी मनुष्य उनके अद्भुत विचारों में उन्हें जीवंत पाते हैं... यदि कभी आपको अवसर मिले तो बेलूर मठ में स्थित उनके तत्कालीन निवास कक्ष को अवश्य देखें आपको महसूस होगा मानो वह विराट आत्मा आज भी उस दिव्य कक्ष में साक्षात विराजमान है... न केवल निवास कक्ष में, बेलूर मठ प्रांगण के हर रजकण में ही नहीं वरन सभी भारतीयों के हृदय में निवास करती है और मानो वह सभी भारतीयों को यह संदेश दे रही हो... उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति होने तक मत रुको... उनके शब्द आज भी कमजोर हृदय में साहस का उद्दीपन करते हैं और शायद ही कोई विरला हो जो उनके विचार को पढ़कर उठ खड़ा ना हो... इसीलिए भारतीय युवा शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वामी विवेकानंद से अधिक उपयुक्त कोई व्यक्तित्व प्रतीत नहीं होता...
आज 12 जनवरी को, पुण्यात्मा के अवतरण दिवस के अवसर पर, मैं स्वामीजी के चरणों में अपनी पुष्पांजलि अर्पित करता हूं और आशा करता हूं कि चिरकाल तक स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व हम सब भारतीयों को एक संपूर्ण विकसित भारतीय समाज के निर्माण की ओर अग्रसर करता रहेगा जिसमें प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं के साथ ही पश्चिम के विज्ञान का भी संतुलित सामंजस्य होगा... आस्था और तर्क के पारंपरिक मेल से ही मनुष्य जाति प्रेम, करुणा, सहृदयता की भावना के साथ प्रगति पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ सकेगी...
जय रामकृष्ण परमहंस
जय स्वामी विवेकानंद
जय शारदा माई
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